मंगलवार, 12 मई 2020

विदा (VIDA)


विदा (10.03.12)
PHOTO SOURCE:- UNSPLASH


कैसे संभाला होगा उस समंदर को
जो आखो में उमड़ आया था
अनायास चमकने लगी थी उसकी आखें
डबडबा गई थी पर बूंद न गिरने दी अपने कोमल कपोलों पर
जड़वत बनी रही अपलक जमीं को निहारती
हाथों में अपने मेरा हाथ थामें......... कुछ न कहती बस मौन थी।
अधरों को दांतों से दबाए आंसुओं को रोकने की
नाकाम कोशिश कर रही थी।
मै भी चुप था.... कहता भी क्या... मुझे पता था मेरे कहने से छलक उठेगा सागर
और अबकी उसे रोकना मुश्किल होगा।
एकाएक मेरी ओर मुड़ी............
नजरें मिली..... अहो! वो सजल तृषित नयन.........
हृदय में गहरे उतर गये खंजर से..........
 वक्त थम सा गया था.... रक्त जम सा गया था।
सांसे अब मानों बोझ हो.......... लब्ज बनते न थे.....
होंठ सिल से गए थे....... हिम्मत करके उसने फिर पूछ लिया...
क्या जाना जरूरी है? कायम रहा मैं मौन पर......
कहा भी तो न गया था कुछ.........
समझकर स्वीकृति मौन को............ फफकने लगी...
अब न रोक पायी थी अपने अश्रुधार को...
अनवरत बहाती रही, फिर रूकी कहने लगी- तुमको क्या फर्क पडता है?
निर्मोही हो तुम तुम्हारे दिल में प्यार नही है।
उफ! उसकी बातें हृदय को चीरती रही थी,
पर काश! एक बार वो हृदय में झांक लेती
फिर देखती वहां वो ही तो थी।
पर वो तो हाथ झटकर पैर पटककर चली गई
मैं भी तो अजीब हूं जो मनाना नही आता।
वाकिफ हूं हर दर्द से
हर दर्द को मैं समझता हूं।
हर दर्द में दर्द भी होता है...........
पर दर्द से आंख नही भरती....
बस टीस सी दिल में चुभती है....
बस टीस सी दिल में चुभती है.....

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2 टिप्पणियाँ:

यहां 14 मई 2020 को 1:54 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

कभी मेघ ले गये सरस संदेसे,कभी कवि ने कल्पित शब्द चुने।विरह से ब्याकुल युग युग में, साहित्य ने फिर वही भाव बुने।

 
यहां 20 मई 2020 को 10:17 am बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद

 

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