आलस्य (AALASYA)
मेरी पहली कविता (2007.08)
आलस्य
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बाल कविता - आलस्य
आओ बच्चों आलस त्यागें,पढ़-लिखकर कुछ नाम कमाएं
जो बच्चे हैं आलस करते,
कभी न आगे बढ़ने पाते।।1।।
सूरज चांद न आलस करते,
इसीलिए तो खूब चमकते।
रोज रात को तारे आते,
नभ में अपनी छटा दिखाते।।2।।
जो नदियां हैं बहती रहती,
सदा साफ और स्वच्छ हैं रहती।
जल गढ्ढे में आलस करता,
कितनी ही बीमारी लाता।।3।।
कृषक वही जो खेती करता,वर्षा धूप की फिक्र न करता।
उसकी मेहनत फिर रंग लाती,
खेती हरी-भरी हो जाती।।4।।
आलस की इक कथा सुनाऊं,
ना करो आलस तुम्हे बताऊं।
खरगोश कछुआ थे जंगल में,
दौड़ लगाने चले जंगल में।।5।।
दौड़ को जो जीतेगा हममें,
वही श्रेष्ठ होगा दोनों में।
दोनों ने जो दौड़ लगाई,
कछुआ रह गया पीछे भाई।।6।।
खरगोश तेजी चाल से चलता,ऊंची छलांगे वन में भरता।
कछुआ न अपनी हार से डरता,
विश्वास हौसले मन में भरता।।7।।
खरगोश ने पीछे कछुआ न देखा,
पीछे रह गया मन में सोचा।
थोड़ा सा आराम मैं कर लूं,
थोड़ी से जरी सांसे भरलूं।।8।।
नींद पड़ी खरगोश को जैसे,
कछुआ आगे निकला वैसे।
हारा खरगोश जीता कछुआ,
इसलिए आलस त्यागो बचुआ।।9।।
-अनिल डबराल
लेबल: बाल-कविता



9 टिप्पणियाँ:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (06 जून 2020) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 3724) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
अनिल जी , ये हुई ना बात बचपन याद दिलाने की ... और वो भी आलस्य पर लिखा...जो आजकल सबको परेशान किये है... बहुत खूब
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
बहुत सुन्दर और प्रेरक बाल कविता ।
धन्यवाद मीना भारद्वाज जी, आपकी टिप्पणी भी मेरे लिए प्रेरक है। बहुत बहुत आभार।
धन्यवाद महिदाय, आप लोगों से सीख रहा हूँ। पुनः आभार
धन्यवाद अलकनंदा सिंह जी, सही कहा आपने.... आजकल आलस्य को दूर करने के लिए प्रेरणा बन रही है, मेरे लिए।
रविन्द्र सिंह जी नमस्ते, बहुत बहुत आभार आपका कविता को स्थान देने के लिए... मैं उपस्थित नही हो पाया इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
सुन्दर संदेश देती लाजवाब बाल कविता
वाह!!!
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