मुक्तक
मगर हर राज अपने दिल में दफनाने की आदत है।।
कहे कैसे, रहे कैसे, जीएं कैसे मरे कैसे?
तेरे दीदार करने का बहाना भी नही मिलता।
तेरे बिन मीत अब ये मन कहीं कुछ भी नही लगता।।
तेरी सोहबत में हूं तो वक्त को पर-पंख लगते हैं।
तेरे बिन साथिया ये वक्त काटे भी नही कटता।।
-अनिल डबराल
1 टिप्पणियाँ
प्रश्न करती लोगों की नजरें, मैं नजर ना चार करता।
जवाब देंहटाएंउसके संग बदनाम होने में मजा अब आ रहा था।।
Bahut sundar पंक्तियाँ.,,,,,,,