गुरुवार, 21 मई 2020

मुक्तक (MUKTAK)

मुक्तक


muktam-poem-of-anil-dabral


मेरे दिल को तुम्हारे दिल से मिल जाने की चाहत है।
मगर हर राज अपने दिल में दफनाने की आदत है।।
इसी उलझन में उलझा हूं, बड़ी नाजु़क सी हालत है।
कहे कैसे, रहे कैसे, जीएं कैसे मरे कैसे?

तेरे दीदार करने का बहाना भी नही मिलता।
तेरे बिन मीत अब ये मन कहीं कुछ भी नही लगता।।
तेरी सोहबत में हूं तो वक्त को पर-पंख लगते हैं।
तेरे बिन साथिया ये वक्त काटे भी नही कटता।।
-अनिल डबराल

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1 टिप्पणियाँ:

यहां 26 जून 2020 को 10:24 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

प्रश्न करती लोगों की नजरें, मैं नजर ना चार करता।
उसके संग बदनाम होने में मजा अब आ रहा था।।
Bahut sundar पंक्तियाँ.,,,,,,,

 

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