बादल
बादल
बादल हूं मैं या बादल की तरह बिखरा हुआ हूं,
धरा से दूर हूं पर............. न नभ तक पहुंचा हुआ हूं.......
न डर है मुझे खुद से धरा को देखकर...
ना गर्व है कि मैं गगन को चूमता हूं।
रात- दिन करता हवा के संग सफर
लक्ष्यहीन हूं या लक्ष्य से भी पार तक पहुंचा हुआ हूं।
-अनिल डबराल
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2 टिप्पणियाँ:
लक्ष्यहीन हूं या लक्ष्य से भी पार तक पहुंचा हुआ हूं।
वाह!!!
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।
धन्यवाद सुधा देवरानी जी , आप लोगों से सीख रहा हूँ..
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