बुधवार, 17 जून 2020

बच्चे (Children)

photo source- google

बच्चे

अभी आकाश सूना था,
अभी नभ नीले रंग में था।
अभी स्कूल में थे बच्चे और,
मैं अपनी छत पे बैठा था।

बजी घंटी हुई छुट्टी, 
बच्चों ने बांध ली मुठ्ठी।
बच्चे अपने घर को भागे,
ज्यों ट्रेन स्टेशन से छूटी।

खा-पीकर केे अब बच्चे,
अपनी अपनी छतों पर हैं।
पतंग और डोर ले हाथों में,
अब नभ को सजाते हैं।

ये बच्चे प्यार की सूरत,
ये बच्चे ईश की मूरत।
अभी जो लग रहे तारे,
वो कल नभ के बनें सूरज।

हल्की सी डांट पे रो देते
हल्की सी लाड़ पे हँस देते।
किलकारियों अठखेलियों से
ये घर आंगन सजा देते।
                                    अनिल डबराल

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11 टिप्पणियाँ:

यहां 17 जून 2020 को 10:01 am बजे, Blogger Sweta sinha ने कहा…

सचमुच बच्चों से ही मासूमियत और कोमलता है।
सुंदर रचना।
सादर।

 
यहां 17 जून 2020 को 1:20 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

सही कहा आपने.... बहुत बहुत धन्यवाद

 
यहां 19 जून 2020 को 8:56 am बजे, Blogger Rakesh ने कहा…

बचपन ऐसा ही होता है बहुत बढ़िया

 
यहां 19 जून 2020 को 12:33 pm बजे, Blogger मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर कोमल मासूम सी कविता ।
सच बच्चे सब ऐसे ही होते हैं।

 
यहां 19 जून 2020 को 2:00 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

प्रतिक्रिया हेतु आभार महोदय।

 
यहां 19 जून 2020 को 2:01 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत आभार...

 
यहां 21 जून 2020 को 12:56 pm बजे, Blogger विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति..... बचपन ऐसा ही होता है...पल में हँसना, पल में रोना और दिल में कोई बात न रखना....ऐसी ही मासूमियत से भरा...

 
यहां 21 जून 2020 को 7:03 pm बजे, Blogger RINKI RAUT ने कहा…

Bahut sundar Kavita Hai

 
यहां 23 जून 2020 को 9:48 am बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद् नैनवाल जी 'अंजान'

 
यहां 25 जून 2020 को 4:20 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

कविता को मंच देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्

 
यहां 25 जून 2020 को 5:04 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद जी......

 

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