शनिवार, 25 जुलाई 2020

अर्थहीन (ARTHHEEN)



अर्थहीन

शाश्वत समझकर देह को
न देही का कुछ भान है।
बस भौतिकी का ज्ञान है,
बस भौतिकी का ज्ञान है।।


जीवन हुआ है अर्थहीन,
है अर्थयुक्त पर अर्थहीन
जीवन और अर्थ परार्थ हो!
न हो तो वह है व्यर्थ हीन।।

आराम की है तलाश पर,
आ राम! की चाहत नही
चाहे निमिष या दीर्घ सुख
आराम कर आ राम! कर।।

बस सुयश की कामना हो,
प्रेम में कोई काम ना हो।
जीतता है विश्व वो,
ना कामना हो काम ना हो।।

वक्त पर जब पर न हों,
पर पर लगा मंजिल चले।
पर पर सदा पर पर ही हैं
पहुंचे कही पर पर रहे।।

अनिल डबराल


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शनिवार, 11 जुलाई 2020

सीख (SEEKH)




1
बागबां ने बरसों पहले
उम्मीद का एक पौधा रोपा था
सोचा था गुलों से महकेगा गुलशन
दरख़्त बनते ही पनाहगार बना उल्लू का
फिर वही कहानी पुरानी

2
बिस्तर पर एक तरफ मैं लेटा था,
तो दूसरी तरफ चंद सिक्के मेरी पहुँच से दूर थे....
बिना कुछ किये उन्हें अपनी तरफ खींचना चाह रहा था 
पर वे टस से मस न हुए 
बाद में पीटने लगा था बिस्तर 
फिर सरकने लगे थे मेरी तरफ...........
अब समझ में आया बिना कुछ किये कुछ नही होता 
हाथ-पाँव तो मारने ही पड़ते हैं.

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