सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

साँझ


साँझ 
नभ के मग पर पग - पग रखकर
शांत रूप कुछ अरुणिम होकर
घन-सघन को रक्तिम कर कर
दूर क्षितिज पर पहुंचा दिनकर 

देख क्षितिज पर रथ दिनकर का 
मन उद्वेलित हुआ विहग राशि का
अब तक जो भूले थे घर को  
अपना घर याद आया उनको


चोंच में ज्यादा दाना भरकर 
अपने बच्चों का खाना भरकर 
चिड़ियों ने नभ में पंख पसारे 
नभ में उनकी लगी कतारें 

इधर कुछ गाय चुगाते बच्चे 
सांझ बिसारे थे मस्ती में 
घर आओ आवाज आ रही 
उनके घर उनकी बस्ती से 
क्रमशः.......

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4 टिप्पणियाँ:

यहां 5 अक्टूबर 2020 को 4:10 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

शानदार कुछ अधूरापन सा

 
यहां 5 अक्टूबर 2020 को 9:18 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

जी, अभी और आगे बढ़ेगी....

 
यहां 27 मार्च 2021 को 8:15 pm बजे, Blogger Sudha Devrani ने कहा…

साँझ बेला का बहुत ही सुन्दर मनभावन शब्दचित्रण
वाह!!!

 
यहां 27 मार्च 2021 को 9:44 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद दी....

 

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