शनिवार, 11 जुलाई 2020

सीख (SEEKH)




1
बागबां ने बरसों पहले
उम्मीद का एक पौधा रोपा था
सोचा था गुलों से महकेगा गुलशन
दरख़्त बनते ही पनाहगार बना उल्लू का
फिर वही कहानी पुरानी

2
बिस्तर पर एक तरफ मैं लेटा था,
तो दूसरी तरफ चंद सिक्के मेरी पहुँच से दूर थे....
बिना कुछ किये उन्हें अपनी तरफ खींचना चाह रहा था 
पर वे टस से मस न हुए 
बाद में पीटने लगा था बिस्तर 
फिर सरकने लगे थे मेरी तरफ...........
अब समझ में आया बिना कुछ किये कुछ नही होता 
हाथ-पाँव तो मारने ही पड़ते हैं.

लेबल:

2 टिप्पणियाँ:

यहां 13 जुलाई 2020 को 6:08 pm बजे, Blogger Meena Bhardwaj ने कहा…

सुन्दर सृजन ।

 
यहां 14 जुलाई 2020 को 8:54 am बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत आभार

 

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ