रही उपेक्षित तू मुझसे,
पर प्रतिपल तूने साथ दिया।
मग में डगमग पडे़ कदम तो,
तुमने उनको थाम लिया।।
हर सुख-दुख हमने साथ सहा।
निर्जीव थी तू ओ हमराही,
और कभी न तुझसे प्यार हुआ।।
पर प्रतिपल तूने साथ दिया।
मग में डगमग पडे़ कदम तो,
तुमने उनको थाम लिया।।
कभी संग चल पड़ा कारवां,
कभी मैं निपट अकेला था।
पर तू थी प्रतिपल संग मेरे,
और कभी न मैंने जाना था।।
हमराह बनी हर पथ में तू,हर सुख-दुख हमने साथ सहा।
निर्जीव थी तू ओ हमराही,
और कभी न तुझसे प्यार हुआ।।
चलता था प्रतिपल़ तुझ संग मैं,
लगा जगत को आवारा।
ऋण है तेरा मुझ पर साथी,
क्या कभी उऋण हो पाउंगा।।
-अनिल डबराल
photo source:- freepic
1 टिप्पणियाँ
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