गांव की एक शाम (AN EVENING IN A VILLAGE)
शाम का समय था। अंधेरा घिर रहा था। एक घर में रेडियो पर अंग्रेजी गीत बज रहे थे। मै सोचने लगा इस गांव में ऐसा कौन है जो अंगे्रजी गीतों को सुन रहा है। यहां तो लोग हिन्दी भी ठीक से नही जानते...... उस घर में लाइट भी नही है......एक छोटी सी चिमनी जल रही है.... शायद कोई वहां खाना बना रहा है। खिडकी से धुंवा बाहर आ रहा है। आखिरकार मैंने अपने दोस्त से पूछ ही लिया- ‘‘प्रभात वहां कौन रहता है’’? उसने कहा- एक बुढ़िया रहती है
‘‘अकेली’’
मेरे सारे सवालों का जवाब मिल गया था।
मैं मौन हो गया..........
-अनिल डबराल
ye hui na baat
जवाब देंहटाएंdhayawad bhai..
हटाएंबढ़िया अनिल द।
जवाब देंहटाएंdhanyawad.... da
हटाएंगज़ब दादा
जवाब देंहटाएंdanyawad dada
हटाएंVery good anil Bhai keep it up
जवाब देंहटाएंdhanyawad vikas bhai.... aap logo k sahyog se sab hoga....
हटाएंBadhiya bhai ji
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyawad bhai...
हटाएंBadhiya
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyawad....
जवाब देंहटाएंAti sunder
जवाब देंहटाएंbahut bahut aabhar
हटाएंतीर सी चुभती कटूक्ति जो समझदारों के लिए एक इशारा है उस विरानेपन की हजारों ब्यथाओं की
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार
हटाएंbahut badiya
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