अर्थहीन
शाश्वत समझकर देह को
न देही का कुछ भान है।
बस भौतिकी का ज्ञान है,
बस भौतिकी का ज्ञान है।।
जीवन हुआ है अर्थहीन,
है अर्थयुक्त पर अर्थहीन
जीवन और अर्थ परार्थ हो!
न हो तो वह है व्यर्थ हीन।।
आराम की है तलाश पर,
आ राम! की चाहत नही
चाहे निमिष या दीर्घ सुख
आराम कर आ राम! कर।।
बस सुयश की कामना हो,
प्रेम में कोई काम ना हो।
जीतता है विश्व वो,
ना कामना हो काम ना हो।।
वक्त पर जब पर न हों,
पर पर लगा मंजिल चले।
पर पर सदा पर पर ही हैं
पहुंचे कही पर पर रहे।।
अनिल डबराल
2 टिप्पणियाँ
वाह!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब सृजन
आराम की है तलाश पर,
आ राम! की चाहत नही
जीतता है विश्व वो,
ना कामना हो काम ना हो।।
अद्भुत शब्दसंयोजन बहुत ही उत्कृष्ट।
धन्यवाद, बहुत बहुत आभार
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