रविवार, 2 अगस्त 2020

मेरा मन (MERA MANN)


बाहर बरसता घन सघन, अन्दर सुलगता मेरा मन।
बारिश की हर इक बूंद को, खुद में समाता मेरा मन।।
बाहर बरसता.............
कुछ मन उदास पहले ही था, कुछ तेरे कारण ऐ घटा।
कुछ शाम की तन्हाई थी, कुछ उनकी थी रूसवाईयां
ये सब हुए एक साथ लेकिन, फिर अकेला मेरा मन
बाहर बरसता.............
बारिश की बूंदें बाण बनकर, बेधती है तन बदन
सावन की हर शीतल पवन, मन में जलाती इक अगन
और फिर इस आग को, आंसुओं से सींचे दो नयन
बाहर बरसता.............
शून्य से गिरती हैं बूंदें, मेरे मन के शून्य में
अधीर हो उठता हृदय जब, तस्वीर बनती शून्य में
फिर तसव्बुर में खयालों में रहे ये मन मगन।
बाहर बरसता.............
सोचता हूं तुम चले आते हो, इस बरसात में
मेघ जल भीगा बदन, लेकिन लबों पर प्यास है
और फिर इस प्यास को, पाने को तरसे मेरा मन।
बाहर बरसता.............
ये बुलबुलों का शोर और ये मेघमय तड़िता चपल
ये मिट्टी की सौंधी महक हर शाख पर पल्लव नवल
फिर घन नदी पर, घन पवन पर, घन धरा, घनमय गगन।
बाहर बरसता.............
मोटी मूसलधार जलधर जब धरा पर डारता
तृप्त कर वसुधा, पवन का शुष्कपन संहारता
अतृप्त मेरा तन-बदल तृषित रहे ये मेरा मन
बाहर बरसता.............

चौंक पड़ता हूं तुम्हे जब देखता हूं भीगते
नभ के नवागत अभ्र को अधरों को तेरे सींचते
अहोभाग्य अभ्र! दुर्भाग्य तू कह मुझ को कोसे मेरा मन
बाहर बरसता.............
ये बहारें ये फुहारें और फिर मौसम सुहाना।
पत्तियां पल-भर परखती मेघ जल का उनपे गिरना
स्वच्छ निखरी पत्तियां और आसमां पर घन गहन
बाहर बरसता.............
देखता हूं दूर पर कुछ एक विरहन कांपती
आंख से काजल बहाती सोई हुई सी जागती
पाद-नख भू चीरती हो बीते ख्वाबों में मगन
बाहर बरसता.............
वो जहां बैठी हुई है है पहाड़ी एक छोटी
सब तरफ सब कुछ अचर है, चर हवा है, और पानी
देह के सब अंग अचर बस चर रहा है प्राण औ मन
बाहर बरसता.............
उसका मन उसको उठा कर ले गया बीती स्मृति में
ऐसी ही बारिश थी उस दिन ले गया ऐसी स्मृति में 
पी का पहला ही परस व्याकुल हुआ था उसका मन
बाहर बरसता.............
सिर को घुटने रख के बैठी प्रिय पति प्रतीक्षिता।
यौवन की वय कामार्तमय, रोमावली थी पुलकिता।
कैसे मिलन हो प्रिय पी का कर रही सौ सौ जतन।
                                                       बाहर बरसता.............
कुछ धूप में थे तप्त पत्थर और अब बारिश में भीगे
शीत से संतप्त हो वे पत्थरों में बैठ भीगे
आज भी उन पत्थरों पर जा के लोटे मेरा मन
बाहर बरसता.............
पत्थर की हरिता घोटकर पी की हथेली पर लगी
मैं हथेली और वह मुंह मेरा देखती ही रही
कमली के कोमल कर-कमल के कमल देखे ये नयन
बाहर बरसता.............
मन समन्दर में कई बातें उठे हिल्लोल कर 
पहुंचकर तट होंठ पर उद्विग्न होता शान्त कर
दमन कर दुर्दम्य का उछ्वास छोडे मेरा मन
बाहर बरसता.............
नदी घाटी से मेघ जल भर शिखर के आलम्ब से
स्वर्ग जाते मेघ देखे बनते बिगडते बिम्ब से
तन युगल का स्थिर हुआ मन मेघमय उड़ता गगन
बाहर बरसता.............
स्वर्ग में सुख है निरन्तर पर नही सुषमा वहां
सुख छोड़ सुषमा संग पाते रेत में मृग से वहां
स्वर्गीय सुख नैसर्गिकी सुषमा पे वारे उनका मन
बाहर बरसता.............
अनमने से थे वहां सुख सम्पदा के मध्य में
मन ही गया था स्वर्ग में मन ही नही था स्वर्ग में
सुन तेज तड़ित की ताड़ना वसुधा को भागे युगल मन
बाहर बरसता.............

-अनिल डबराल
फोटो गूगल साभार 

लेबल:

10 टिप्पणियाँ:

यहां 2 अगस्त 2020 को 6:54 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

Acha likha h☺

 
यहां 2 अगस्त 2020 को 9:04 pm बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

bahut bahut aabhar

 
यहां 6 अगस्त 2020 को 12:04 am बजे, Blogger Sudha Devrani ने कहा…

अनमने से थे वहां सुख सम्पदा के मध्य में
मन ही गया था स्वर्ग में मन ही नही था स्वर्ग में
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सृजन
बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग डबराल जी!
आपका लेखन लाजवाब है।

 
यहां 6 अगस्त 2020 को 10:13 am बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत आभार दी, आप लोगों का सानिध्य बहुत कुछ सिखा रहा है।

 
यहां 6 अगस्त 2020 को 10:22 am बजे, Blogger Unknown ने कहा…

आपकी साहित्यिक साधना और विहंगम दृष्टिकोण सबके लिए आह्लादकारी है, सुंदरतम मनसा

 
यहां 6 अगस्त 2020 को 10:28 am बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद जी

 
यहां 8 अगस्त 2020 को 11:10 pm बजे, Blogger Meena Bhardwaj ने कहा…

हर बंध लाजवाब...बहुत सुन्दर सृजन ।

 
यहां 9 अगस्त 2020 को 6:45 am बजे, Blogger ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत आभार मीना जी

 
यहां 10 अगस्त 2020 को 2:32 pm बजे, Blogger Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर डबराल द गजब सच में मजा आ गया।

 
यहां 10 अगस्त 2020 को 5:37 pm बजे, Anonymous ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद

 

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ