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photo source- google |
बच्चे
अभी आकाश सूना था,
अभी नभ नीले रंग में था।
अभी स्कूल में थे बच्चे और,
मैं अपनी छत पे बैठा था।
बजी घंटी हुई छुट्टी,
बच्चों ने बांध ली मुठ्ठी।
बच्चे अपने घर को भागे,
ज्यों ट्रेन स्टेशन से छूटी।
खा-पीकर केे अब बच्चे,
अपनी अपनी छतों पर हैं।
पतंग और डोर ले हाथों में,
अब नभ को सजाते हैं।
ये बच्चे प्यार की सूरत,
ये बच्चे ईश की मूरत।
अभी जो लग रहे तारे,
वो कल नभ के बनें सूरज।
हल्की सी डांट पे रो देते
हल्की सी लाड़ पे हँस देते।
किलकारियों अठखेलियों से
ये घर आंगन सजा देते।
अनिल डबराल
11 टिप्पणियाँ
सचमुच बच्चों से ही मासूमियत और कोमलता है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
सादर।
सही कहा आपने.... बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबचपन ऐसा ही होता है बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया हेतु आभार महोदय।
हटाएंबहुत सुंदर कोमल मासूम सी कविता ।
जवाब देंहटाएंसच बच्चे सब ऐसे ही होते हैं।
बहुत बहुत आभार...
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति..... बचपन ऐसा ही होता है...पल में हँसना, पल में रोना और दिल में कोई बात न रखना....ऐसी ही मासूमियत से भरा...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद् नैनवाल जी 'अंजान'
हटाएंBahut sundar Kavita Hai
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद जी......
हटाएंकविता को मंच देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्
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