बच्चे (Children)

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बच्चे

अभी आकाश सूना था,
अभी नभ नीले रंग में था।
अभी स्कूल में थे बच्चे और,
मैं अपनी छत पे बैठा था।

बजी घंटी हुई छुट्टी, 
बच्चों ने बांध ली मुठ्ठी।
बच्चे अपने घर को भागे,
ज्यों ट्रेन स्टेशन से छूटी।

खा-पीकर केे अब बच्चे,
अपनी अपनी छतों पर हैं।
पतंग और डोर ले हाथों में,
अब नभ को सजाते हैं।

ये बच्चे प्यार की सूरत,
ये बच्चे ईश की मूरत।
अभी जो लग रहे तारे,
वो कल नभ के बनें सूरज।

हल्की सी डांट पे रो देते
हल्की सी लाड़ पे हँस देते।
किलकारियों अठखेलियों से
ये घर आंगन सजा देते।
                                    अनिल डबराल

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11 टिप्पणियाँ

  1. सचमुच बच्चों से ही मासूमियत और कोमलता है।
    सुंदर रचना।
    सादर।

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  2. बचपन ऐसा ही होता है बहुत बढ़िया

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  3. बहुत सुंदर कोमल मासूम सी कविता ।
    सच बच्चे सब ऐसे ही होते हैं।

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति..... बचपन ऐसा ही होता है...पल में हँसना, पल में रोना और दिल में कोई बात न रखना....ऐसी ही मासूमियत से भरा...

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  5. कविता को मंच देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्

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