श्री गिरधर प्रसाद सिलोड़ी



श्री गिरधर प्रसाद सिलोड़ी

गिरा गम्यं देवं गुरूरखिल दोषं शमयति।
    रविरश्मि-ज्योति इव सकलं शून्यं प्रभवति।।
  धरा-धामे पुण्यं प्रवहति यथा भीष्मजननी।
    रणेजित्वा शत्रून् हरति तम रजनीरिव रवि।

प्रभाते प्रोत्थाय प्रददति प्रसादं पुरूजनं।
सावित्रि-सूर्याया इव तम प्रहन्ता हर्षति।
     दया दीपो भाति ज्वलति हृदये ते नमः कुरू।
दया-दृष्टिं वृष्टिं प्रकुरू गुरूः श्री गिरधरः।।

कर्मनिष्ठ धर्मनिष्ठ राष्ट्रभक्त देवता
दया-स्वरूप भक्ति निष्ठ विश्व उन्हे सेवता।।
परोपकार में सदा स्वदेह को भुला दिया।
‘‘दर्शन’’ की प्रगति का मार्ग ही खुला दिया।।

थे स्वाभिमानी वीर वे कुछ कर्म ऐसा कर गए।
खुद ना रहे दुनिया में वे सबके दिलों में बस गए।।
थी चाह उनकी बस यही हर कोई सबमें योग्य हो।
प्रखर बने सबकी ही बुद्धि ना ही कोई अयोग्य हो।।

-अनिल डबराल

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