सन्त सदा सुख ज्ञान की राशी। निर्लोभी सज्जन अविनाशी।।
सन्त तपस्वी ज्ञान प्रकाशी। सन्तों का मन जैसे काशी।।
सन्त स्वरूप में मस्त रहते। शिव चिन्तन अविलम्ब करते।।
शिव-शक्ति की आज्ञा पाकर । सन्त विश्व-कल्याण करते।।
ऐसे ही एक सन्त तपस्वी। तेज-ओज से पूर्ण मनस्वी।।
आए थी करने तीर्थाटन। मुनि की रेती में रम गया था मन।।
एक दिन स्वप्न में शंकर आए। आकर के उनसे ये बोले।।
यहां पे आश्रम एक बनाओ। ज्ञान ध्यान और योग सिखाओ।।
स्वप्न देखकर राघव जी लिए एक संकल्प।
कठिनाइयां भी आई पर साहस हुआ न अल्प।।1।।
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