मनरेगा मा मन ऐग्या
पुंगड़ी-पटली सब छुट ग्या
मन लग ग्या अब ध्याड़ी मा
अर गदन की कुर्री घर ऐ ग्या
स्यार ख्यात की सुध नी ले
साग-सगोड़ की सुध रै ग्ये
सट्टी झंगोरू भूल ग्या
अर सग्वड़ साफ सुंगर कै ग्ये
बंध्यूं बराबर बाघ गरजणू
हमतै धक्यैकी सुंगर सरकुणु
सुंगर त बाट क बाट आणू
सुंगर क सौर मनखी सरकणू
झ्याड़-क्याड़ अर गौं गुठ्यार
बांज झन्नी क टुट्या द्वार
गोरू की पौ-बार छे कभी
आज ह्वे ग्या सब खंद्वार
1 टिप्पणियाँ
मनोरोग जैसा हो गया मनरेगा
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