गुरुवार, 25 जून 2020

मारियो की याद (MARIO)


Photo source: polygon


मारियो की याद (MARIO)

साल बीते सर्दियों की उन दिनों की बात है,
बस घूमकर बीते थे दिन ये उन दिनों की बात हैं

दूर मेरा गांव पहाड़ी और पहाड़ी जिन्दगी
पर हमारी जिन्दगी थी मस्त मौला जिन्दगी
स्कूल थे सब बन्द तब शीतावकाश की बात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
कुछ हम जवां कुछ दिल जवां और मारियो भी था नया
और उसे रानी दिलाने भटके न जाने कहां कहां।
पर उसे रानी मिली ना ये गजब की बात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
पंकज जोशीला जोश में आकर ये कहता जोर से
‘‘भैस की आंख आज आर या पार’’ सबको डराता शोर से
दूजी स्टेज पार करली बड़े गर्व की बात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
रोहित टि-टीट कर चल पड़ा थी सामने बतखों की फौज,
कुछ उड़ रहे कुछ चल रहे, पता ना चला किसने मारी चोच
छोटा हुआ चलता रहा ये बर्गर की सौगात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
नब्बी नया था खेल में हरवक्त पूछे ‘‘अब क्या कन’’
भैजी ईं स्टेज पार करै द्या अब तुमरी हथ च बचण या मुन्न।
नब्बी के बदले खेलता मैं सब कहते ये गलत बात है।
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
नब्बी उछालता मारियो खुद भी उछल पड़ता था वो
जोर से दबाकर बटन रिमोट खराब करता था वो।
दीवार तोड़ पैंसे कमाता बडी निराली बात है।
         बस घूम कर बीते......................
 साल बीते सर्दियों की..................
‘‘झांस-रांस को’’ चल पड़ा मोहित जो चैथी स्टेज में,
अनजान था स्टेज से फिसलन हुई थी बर्फ से।
एक बतख उल्टा किया कहा ‘‘तेरी यही औकात है’’
         बस घूम कर बीते......................
 साल बीते सर्दियों की..................
                                                                                                  
-अनिल डबराल 




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बुधवार, 17 जून 2020

बच्चे (Children)

photo source- google

बच्चे

अभी आकाश सूना था,
अभी नभ नीले रंग में था।
अभी स्कूल में थे बच्चे और,
मैं अपनी छत पे बैठा था।

बजी घंटी हुई छुट्टी, 
बच्चों ने बांध ली मुठ्ठी।
बच्चे अपने घर को भागे,
ज्यों ट्रेन स्टेशन से छूटी।

खा-पीकर केे अब बच्चे,
अपनी अपनी छतों पर हैं।
पतंग और डोर ले हाथों में,
अब नभ को सजाते हैं।

ये बच्चे प्यार की सूरत,
ये बच्चे ईश की मूरत।
अभी जो लग रहे तारे,
वो कल नभ के बनें सूरज।

हल्की सी डांट पे रो देते
हल्की सी लाड़ पे हँस देते।
किलकारियों अठखेलियों से
ये घर आंगन सजा देते।
                                    अनिल डबराल

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सोमवार, 8 जून 2020

बादल

बादल
PHOTO SOURCE: GOOGLE

बादल हूं मैं या बादल की तरह बिखरा हुआ हूं,
धरा से दूर हूं पर............. न नभ तक पहुंचा हुआ हूं.......
न डर है मुझे खुद से धरा को देखकर...
ना गर्व है कि मैं गगन को चूमता हूं।
रात- दिन करता हवा के संग सफर
लक्ष्यहीन हूं या लक्ष्य से भी पार तक पहुंचा हुआ हूं।
                                                                                                                  
-अनिल डबराल

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गुरुवार, 4 जून 2020

आलस्य (AALASYA)

मेरी पहली कविता (2007.08)
आलस्य

PHOTO:- HEADLINES EDUCATION

बाल कविता - आलस्य
आओ बच्चों आलस त्यागें,
पढ़-लिखकर कुछ नाम कमाएं
जो बच्चे हैं आलस करते,
कभी न आगे बढ़ने पाते।।1।।

सूरज चांद न आलस करते,
इसीलिए तो खूब चमकते।
रोज रात को तारे आते,
नभ में अपनी छटा दिखाते।।2।।

जो नदियां हैं बहती रहती,
सदा साफ और स्वच्छ हैं रहती।
जल गढ्ढे में आलस करता,
कितनी ही बीमारी लाता।।3।।

कृषक वही जो खेती करता,
वर्षा धूप की फिक्र न करता।
उसकी मेहनत फिर रंग लाती,
खेती हरी-भरी हो जाती।।4।।

आलस की इक कथा सुनाऊं,
ना करो आलस तुम्हे बताऊं।
खरगोश कछुआ थे जंगल में,
दौड़ लगाने चले जंगल में।।5।।

दौड़ को जो जीतेगा हममें,
वही श्रेष्ठ होगा दोनों में।
दोनों ने जो दौड़ लगाई,
कछुआ रह गया पीछे भाई।।6।।

खरगोश तेजी चाल से चलता,
ऊंची छलांगे वन में भरता।
कछुआ न अपनी हार से डरता,
विश्वास हौसले मन में भरता।।7।।

खरगोश ने पीछे कछुआ न देखा,
पीछे रह गया मन में सोचा।
थोड़ा सा आराम मैं कर लूं,
थोड़ी से जरी सांसे भरलूं।।8।।

नींद पड़ी खरगोश को जैसे, 
कछुआ आगे निकला वैसे।
हारा खरगोश जीता कछुआ, 
इसलिए आलस त्यागो बचुआ।।9।।
                                                                                                                                    
-अनिल डबराल

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मंगलवार, 2 जून 2020

हाल-ए-दिल (HAL-E-DIL)

हाल-ए-दिल
PHOTO SORCE:- VIMAL DABRAL

अभी क्या हुआ था कुछ दिन पहले, एक शख्स दिल में उतरने लगा था।
आदत न थी आसमां देखने की, चांद-तारों को निहारने लगा था।।
बेखुदी का आलम न पूछो, प्रेम गीत गाने लगा था।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
दिल कभी किल्लोल करता, और कभी मायूस होता।
क्या बताऊं आपको मैं, दिल में कुछ-कुछ हो रहा था।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
खुश था दिल पर बात क्या थी, ये नही मैं जान पाया।
कल तक न था दिल का पता, और आज धक्-धक् सुन रहा था।।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
दिल था खुश उसकी झलक से, तो बात करने पर क्या होता।
अब फिजा के फूल गुल में, उसका चेहरा दिख रहा था।।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
बढ़ते कदम किसी डगर को, मैं डगर फिर भूल जाता।
मन आल्हादित कौतुहल-वश, नाचने को कर रहा था।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
प्रश्न करती लोगों की नजरें, मैं नजर ना चार करता।
उसके संग बदनाम होने में मजा अब आ रहा था।।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
ये तो था आगाज-ए-इश्क, अंजाम-ए-इश्क न जान पाया।
मेरे ख्वाबों के जहां में, एक आशियाना बन रहा था।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
मन-मोहिनी वह स्वर्ण-लता, शाखों में आगे बढ़ गई।
वह निचेष्ट बैठा धरा पर, बाट उसकी जोह रहा था।।
अभी क्या हुआ.............
एक शख्स दिल ............
                                                                                                                                       
-अनिल डबराल

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सोमवार, 1 जून 2020

अंजान दुश्मन (ANJAAN DUSHMAN)


GANGU- SENA KA EK SIPAHI

अंजान दुश्मन

1

बात आज से लगभग दस-ग्यारह साल पुरानी है, हमारे गांव में एक नया जानवर आया था। जो भेड़-बकरियों के बच्चों को अपना सुलभ शिकार बना रहा था। लोगों के कटहल, पपीतों का नाश कर रहा था। लोग कहते थे कि जब हम गाय-बकरियां चुगाने जाते हैं तब यह गौशाला में जाकर छोटी बकरियांे को मार डालता है। मैं भी इसके बारे में काफी बार सुन चुका था।

      हमारे गांव के पास एक बरसाती गदेरा है। इस गदेरे में बरसात के एक-दो महीने ही पानी रहता है, लेकिन यह भयानक इसलिए है क्योंकि यहां दिन में भी घुप्प अंधेरा रहता है। एक जमाने में जब हम खेलों में मस्त होकर गाय चुगाते थे तो समय का पता ही नही चलता था। अंधेरा होने पर गायों की खोज होती थी। जब गायों लम घर लाते समय बांस गदेरे में पहुंचते तो डर जाते थे, लेकिन यहां झाड़ियों में निवृत होते वृद्धों का बड़ा सहारा मिलता था। ये लोग हमें देखते ही खांसने लगते थे कि कहीं हम उन्हे अचानक देखकर डर न जाए। कान में जनेउ सामने रखा लोटा और कहते रहते थे ‘‘ऐजा बाबा ऐजा बाबा डौरी ना रे’’

एक बार मैं और टीटू बांस गदेरे की तरफ जा रहे थे। कि तभी टीटू ने भयभीत होकर धीरे से कहा- ‘‘भैजी वे खैण क डाल मां दिखदी’’ मैंने वहां देखा तो एक जानवर पेड़ पर बैठा था। उसकी झब्बेदार पूंछ पर काली-सफेद लाइनें बनी थी। उसका पूरा शरीर भी इसी प्रकार का था। हमारी आंखें चार होते ही वह नौ-दो-ग्यारह हो गया। उसका भागते देख हमनें गांव के पालतू कुत्तों को विमल की सिग्नल सीटी  से सिग्नल दिया। और कुछ ही क्षण में कुत्ते हमारे साथ थे। गांव भर के पालतू कुत्ते विमल के दोस्त थे। और हों भी क्यों न उनके लिए वह हर प्रकार से रोटी की व्यवस्था करना, नहलाना उसके रोज के काम थे।

      हमसे मिलते ही कुत्ते खुश हो जाते थे कि आज पता नही क्या एडवेंचर करने को मिलेगा। हम क्या-क्या एडवेंचर करते थे ये बस कुत्ते और हम ही जानते थे।

      हमने सिंटी (कुतिया) का वो जगह सुंघाई जहां पर वह जानवर पेड़ से उतरा था। सिंटी भी सूंघकर पागलों की तरह कूं-कूं करती हुई चारों ओर दौड़ने लगी। गंगू और कालू (कुत्ते) भी उसके साथ दौड़ने लगे। वे कभी झााड़ियों में घुसते कभी बाहर आते। इन सब को देखकर लग रहा था मानों ये किसी बड़े युद्ध की तैयारी कर रहे है और अपने प्रतिद्वन्दी को खोजने के लिए पागल हुए जा रहे है। कुत्ते भी अजीव जानवर होते हैं। अपने से चार कदम दूरी पर बैठी मुर्गी के पास सुंघकर चले जाते हैं। पर चार कदम दूर से उस देख नही पाते।

अचानक सिंटी तेजी से दौड़ते हुए आगे भागी। मानो उस उस अंजान दुश्मन के अड्डे का पता चल गया हो। गंगू और कालू भी तेजी से वहां पहुंचे। हमारे लिए वहां से जाना सम्भव नही था। फिर भी टीटू वहां से जाना चाहता था। पर मैंने मना कर दिया मैंने सोचा दुश्मन अंजान है, पता नही उसके तरकश में कौन-कौन से तीर होंगे। हम दूसरे रास्ते से होते हुए उस स्थान पर पहुंचे। हमारे सामने तीनों कुत्ते एक गुफा के सामने खड़े थे। हम गुफा से थोड़ी दूरी पर थे। हमारे और गुफा के बीच में लगभग दो मीटर का फासला था। और यह फासला एक गदेरे के कारण था।

उस दुश्मन से लड़ने के लिए हमारे पास तीन सूरमा थे। पर दुश्मन को कभी कम नही आंकना चाहिए। इसलिए टीटू को फेंकने लायक पत्थर देकर मैंने पेड़ पर चढ़ा दिया। और खुद मैदान में डटकर सेना का हौसला बढ़ा रहा था।

2

वह अन्जान दुश्मन एक बड़े पत्थर के नीचे गुफा में बैठा गुर्रा रहा था। मन में तरह-तरह के खयालात आ रहे थे। एक क्षण के लिए मैंने सोचा कि अगर यह दुश्मन बाहर आ जाता है, और कुत्ते भाग जाते हैं तो यह मुझ पर ही हमला करेगा। पर कुत्ता और घोड़ा स्वामीभक्त होता है। इस रणभूमि में मुझे वीर चेतक की याद आ गई कि किस प्रकार घायल होते हुए भी वह स्वामी को शत्रुओं के बीच से उड़ा ले गया था।

      सेनानायिका सिंटी गुफा के बाहर गर्जना कर के थक गई थी। अब यह काम उसका पुत्र गंगू कर रहा था। लेकिन अंजान दुश्मन का यह दुर्ग अटूट था, और वह अन्दर से लगातार गुर्राहट कर रहा था। काफी समय के परिश्रम के बाद जब कोई फल नही मिला तो सेना का हौसला टूटने लगा। ऐसा होते देख मैंने अपने हाथ में एक डंडा उठा लिया। सेना ने सोचा शायद यह उनकी नाकामयाबी का ईनाम है। पर मुझे पता था कि सेना ने भरसक प्रयास किया है। मैंने वह डंडा गुफा में घुसेड़ दिया। उस डंडे पर मुझे कोमलता का अनुभव हुआ, मेरे मन में दया का भाव आया ही था कि वह फिर से गुर्रा दिया।

सेना को लगा कि अंजान दुश्मन कप्तान पर अकड़ रहा है, वह फिर गुफा के बाहर श्वाननाद करने लगी। मैंने दुवारा डंडा गुफा में डाला सेनानायिका सिंटी इतनी उत्साहित हुई कि उसने अपना मुंह गुफा के उस छोटे से छेद में डाला और खूब भौंकी, जब मैनें डंडा बाहर निकाला तो वह उस डंडे पर झपट पड़ी। मैं समझ गया कि वीरता और उत्साह का चरम यही पागलपन है।

अब तीनों ने फिर से जोर लगा दिया। सेना अंजान दुश्मन के किले को खोदने लगी। वहां पर कुछ बड़े-बड़े पत्थर थे जिनको वे हिला न सके, यह काम कप्तान के डंडे ने कर दिया। जैसे ही पत्थर हटे मेरा दिमाग बहुत तेजी से चलने लगा। कि अगर ऐसा होगा तो मैं ऐसा करूंगा। जितना तेज तब मेरा दिमाग चल रहा था, उतने ही तेज अब मेरे हाथ कहानी लिखते हुए चल रहे हैं। क्योंकि मैं इस समय जोश से भरा हूं। पाठकों तक उस घटना का हर क्षण पहुंचा रहा हूं। इस समय मैं अपना लिखा हुआ नही देख पा रहा हूं, क्योंकि मेरे सामने वही है अंजान दुश्मन और उसका एन्काउन्टर.....
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      अचानक सिंटी ने गुफा में मुंह डाल दिया अंजान दुश्मन उस पर झपट पड़ा। एक क्षण के लिए उसकी डरावनी आंखें मेरे सामने थी। वे खतरनाक ढंग से चमक रही थी। सिंटी घायल हो गई थी पर उसने अपना सिर गुफा से बाहर नही निकाला। वह वहीं डटी रही। बाहर कालू और गंगू व्यग्र होकर इधर-उधर घूम रहे थे। वे चाहकर भी अपनी साथिनी की मदद नही कर पा रहे थे। परन्तु सिंटी उस अंजान दुश्मन से उलझी हुई थी। उसकी घायल होकर निकलने वाली आवाज हम लगातार सुन रहे थे कि तभी सिंटी के मुंह में अंजान दुश्मन का मुंह आया और उसने उसे गुफा से बाहर खींच दिया। बाहर निकलते ही सारी सेना उस पर टूट पड़ी। उसको कुत्तों से घिरा देख उसको बचाने के लिए जब तक हम उसके पास पहुंचते तब तक कुत्तों ने उसे मार डाला था। हमारी आवाज सुनकर पुरणी दादी भी घटनास्थल पर पहुंच गई। उस जानवर को देखकर दादी खुश हो गई। दादी कहने लगी- ‘‘ई बाप्पा हैं! क्य जानवर च यू? अर क्या पैन दांत छिन येक, यौऽऽऽ अर मारी द्या न तुमुन इी कौर.... हे बुबा! भौत नुकसान कौर येन, ऊं दीपू होरूक सब कठल, चिनख येन ही त खैन... पर चलो अब खूब ह्वे गया ना.......।  सारा गांव खुश था। कि उनका नुकसान करने वाला अब नही रहा, उनकी बकरियों के बच्चों को खाने वाला समाप्त हो चुका है। पर हम दोनों-तीनों भाई आज भी उस घटना को लेकर  में रहते दुविधा में रहते हैं कि, क्या ये सही था?

                                                                  

                
-अनिल डबराल

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