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मारियो की याद (MARIO)
साल बीते सर्दियों की उन दिनों की बात है,
बस घूमकर बीते थे दिन ये उन दिनों की बात हैं
दूर मेरा गांव पहाड़ी और पहाड़ी जिन्दगी
पर हमारी जिन्दगी थी मस्त मौला जिन्दगी
स्कूल थे सब बन्द तब शीतावकाश की बात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
कुछ हम जवां कुछ दिल जवां और मारियो भी था नया
और उसे रानी दिलाने भटके न जाने कहां कहां।
पर उसे रानी मिली ना ये गजब की बात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
पंकज जोशीला जोश में आकर ये कहता जोर से
‘‘भैस की आंख आज आर या पार’’ सबको डराता शोर से
दूजी स्टेज पार करली बड़े गर्व की बात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
रोहित टि-टीट कर चल पड़ा थी सामने बतखों की फौज,
कुछ उड़ रहे कुछ चल रहे, पता ना चला किसने मारी चोच
छोटा हुआ चलता रहा ये बर्गर की सौगात है
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
नब्बी नया था खेल में हरवक्त पूछे ‘‘अब क्या कन’’
भैजी ईं स्टेज पार करै द्या अब तुमरी हथ च बचण या मुन्न।
नब्बी के बदले खेलता मैं सब कहते ये गलत बात है।
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
नब्बी उछालता मारियो खुद भी उछल पड़ता था वो
जोर से दबाकर बटन रिमोट खराब करता था वो।
दीवार तोड़ पैंसे कमाता बडी निराली बात है।
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
‘‘झांस-रांस को’’ चल पड़ा मोहित जो चैथी स्टेज में,
अनजान था स्टेज से फिसलन हुई थी बर्फ से।
एक बतख उल्टा किया कहा ‘‘तेरी यही औकात है’’
बस घूम कर बीते......................
साल बीते सर्दियों की..................
-अनिल डबराल