रविवार, 31 मई 2020

श्री राघवाचार्य जी (RAGHVACHARYA JI)

श्री राघवाय नमः
Photo source: google


सन्त सदा सुख ज्ञान की राशी। निर्लोभी सज्जन अविनाशी।।
सन्त तपस्वी ज्ञान प्रकाशी। सन्तों का मन जैसे काशी।।
सन्त स्वरूप में मस्त रहते। शिव चिन्तन अविलम्ब करते।।
शिव-शक्ति की आज्ञा पाकर । सन्त विश्व-कल्याण करते।।
ऐसे ही एक सन्त तपस्वी। तेज-ओज से पूर्ण मनस्वी।।
आए थी करने तीर्थाटन। मुनि की रेती में रम गया था मन।।
एक दिन स्वप्न में शंकर आए। आकर के उनसे ये बोले।।
यहां पे आश्रम एक बनाओ। ज्ञान ध्यान और योग सिखाओ।।

स्वप्न देखकर राघव जी लिए एक संकल्प।
कठिनाइयां भी आई पर साहस हुआ न अल्प।।1।।

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शुक्रवार, 29 मई 2020

श्री गिरधर प्रसाद सिलोड़ी



श्री गिरधर प्रसाद सिलोड़ी

गिरा गम्यं देवं गुरूरखिल दोषं शमयति।
    रविरश्मि-ज्योति इव सकलं शून्यं प्रभवति।।
  धरा-धामे पुण्यं प्रवहति यथा भीष्मजननी।
    रणेजित्वा शत्रून् हरति तम रजनीरिव रवि।

प्रभाते प्रोत्थाय प्रददति प्रसादं पुरूजनं।
सावित्रि-सूर्याया इव तम प्रहन्ता हर्षति।
     दया दीपो भाति ज्वलति हृदये ते नमः कुरू।
दया-दृष्टिं वृष्टिं प्रकुरू गुरूः श्री गिरधरः।।

कर्मनिष्ठ धर्मनिष्ठ राष्ट्रभक्त देवता
दया-स्वरूप भक्ति निष्ठ विश्व उन्हे सेवता।।
परोपकार में सदा स्वदेह को भुला दिया।
‘‘दर्शन’’ की प्रगति का मार्ग ही खुला दिया।।

थे स्वाभिमानी वीर वे कुछ कर्म ऐसा कर गए।
खुद ना रहे दुनिया में वे सबके दिलों में बस गए।।
थी चाह उनकी बस यही हर कोई सबमें योग्य हो।
प्रखर बने सबकी ही बुद्धि ना ही कोई अयोग्य हो।।

-अनिल डबराल

मनरेगा (SIDE EFFECT OF MANREGA)

मनरेगा 
PHOTO SOURCE:  GOOGLE


मनरेगा मा मन ऐग्या
पुंगड़ी-पटली सब छुट ग्या
मन लग ग्या अब ध्याड़ी मा
अर गदन की कुर्री घर ऐ ग्या

स्यार ख्यात की सुध नी ले
साग-सगोड़ की सुध रै ग्ये
सट्टी झंगोरू भूल ग्या
अर सग्वड़ साफ सुंगर कै ग्ये

बंध्यूं बराबर बाघ गरजणू
हमतै धक्यैकी सुंगर सरकुणु
सुंगर त बाट क बाट आणू
सुंगर क सौर मनखी सरकणू

झ्याड़-क्याड़ अर गौं गुठ्यार
बांज झन्नी क टुट्या द्वार
गोरू की पौ-बार छे कभी
आज ह्वे ग्या सब खंद्वार

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शुक्रवार, 22 मई 2020

इन्तजार (INTJAR)

इन्तजार
Photo source:- jhumki pics

सुबह से इन्तजार में थे..... न वो आया न पैगाम आया.....
न सब्र ने घुटने टेके, न दिल ने आस छोड़ी, न सागर में उफान आया।
राह देखते-देखते रात कट गई, चांद से बातें पूरी हुई,
रात भर तेरे किस्से तेरी बातें बताई उसे।
इत्मिनान से सुनता रहा तुम्हारी सारी बातें चांद..............
जिनको न कभी तुमने सुना......
एक चांद का साथ पूरा हुआ.......
एक चांद का पता नही.....
-अनिल डबराल

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गुरुवार, 21 मई 2020

मुक्तक (MUKTAK)

मुक्तक


muktam-poem-of-anil-dabral


मेरे दिल को तुम्हारे दिल से मिल जाने की चाहत है।
मगर हर राज अपने दिल में दफनाने की आदत है।।
इसी उलझन में उलझा हूं, बड़ी नाजु़क सी हालत है।
कहे कैसे, रहे कैसे, जीएं कैसे मरे कैसे?

तेरे दीदार करने का बहाना भी नही मिलता।
तेरे बिन मीत अब ये मन कहीं कुछ भी नही लगता।।
तेरी सोहबत में हूं तो वक्त को पर-पंख लगते हैं।
तेरे बिन साथिया ये वक्त काटे भी नही कटता।।
-अनिल डबराल

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हिज्र-ए- मोहब्बत (HIZR-E-MOHABBAT)


हिज्र-ए- मोहब्बत



परेशां तो तुम भी होवोगे जब रिश्ता हमसे तोड़ोगे।
हम दिल पर पत्थर रख लेंगे पर लब से कुछ ना बोलेंगे।

दुःख तो हमको भी होगा जी, शायद तुमसे कुछ ज्यादा ही।
पूछे जब कोई हाल-ए-दिल, हम अपने आंसू पी लेंगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................
हमें मिला है इश्क में वो, जो हर आशिक को मिलता है।
मिली भीड़ में तन्हाई, लेकिन फिर भी जी लेंगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................

तुम्हे मुझसे हजारों थे, मुझे तुम-से बस तुम ही थे।
मांगे दिल जब मुझसे तुमको, हम झूठी आस दिला देंगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................
नही चाहते थे हमको तो, इक बार हमें बतला देते।
चलो छोड़ो तुमने छोड़ा है, दुनिया को ना बतलाएंगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................
तकरार में मेरे प्यार ही था, पर तुमने उसको ना समझा।
छोड़ा मेरा हाथ औ साथ मेरा, एक दिन खुद पर खुद रोवोगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................
हर शाम तेरा ही तसव्वुर था, हर रात तेरे ही थे सपने,।
हर दिन तेरे ख्वाब पिरोता था, सोचा भी न था यूं छोड़ोगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................
तुम्हें देख के धड़कन चलती थी, तेरी बात से सांस महकती थी।
तुम से ही मुकम्मल थी मेरी जां, सोचा था कि खद जां जाओगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................
लब्ज लबों पर जब आए, इजहार किया तुम शरमाए।
इकरार किया था तुमने भी, हम वो दिन कैसे भूलेंगे।।
हम दिल.........................................
 पर लब से....................................

-अनिल डबराल



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ख़त भेजा था। (KHAT BHEJA THA)

ख़त भेजा था।
Photo source:- डाबर डबराल fb post

खत भेजा था उनको, जबाव मिल गया है।
इजहार कर आए थे, इकरार मिल गया है।।

कई बार उठी थी कलमें, पर कागज रह गए कोरे
दिल ने मारी हिल्लोरें, बा-मुश्किल रोकी लहरें
बेकरार मेरे दिल को, करार मिल गया है
इजहार कर आए............................
खत भेजा था...................................
कई बार की थी कोशिश, कई खत भी लिखे थे उनको
कहीं  रूठ ना जाएं वो, मैंने डर के न भेजे उनको
बेकरार मेरे दिल को, आराम मिल गया है।
इजहार कर आए............................
खत भेजा था...................................
मन डोला मेरा तब से, मैंने जब से देखा तुमको
मेरे दोस्त ये कहते थे, अरे प्यार हो गया तुमको
उनमें कहीं मुझको अपना, संसार मिल गया है।
इजहार कर आए............................
खत भेजा था...................................
तुमसे मिलने को अक्सर, फिरता था उन गलियों में
तेरा आना जाना अक्सर, होता था जिन गलियों से
तुझ बिन मेरा जीना, दुश्वार हो गया है
इजहार कर आए............................
खत भेजा था...................................

मैं गली से तेरी गुजरूं, और तू न दिखाई दे तो
मैं गीत सुहाने गांऊ, बड़े जोर से तुझे सुनांऊ
तेरे दीद बिन मेरा दिन, बेकार हो गया है।
इजहार कर आए............................
खत भेजा था...................................

-अनिल डबराल

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शाम आ गई (SAAM AA GAYI)

शाम आ गई
ये शाम आ गई और शमा जल गई
दिल तसव्वुर में खोया तू याद आ गई
सर्द मौसम के थे सूखे पत्ते से हम
मर गए थे मगर चल रहा था भरम
तेरी याद आ गई और बहार आ गई 
मानों सूखे मेरे मन में घटा छा गई

ये शाम आ गई..........................
दिल तसव्वुर में खोया................
आती जाती हवाओं से पूछा किए
हाल तेरा सनम उनसे पूछा किए
तेरी खुशबू हवाएं लुटाती रही
हाल पर मेरे वो मुस्कराती रही

ये शाम आ गई..........................
दिल तसव्वुर में खोया................
रात चलती रही दीप जलता रहा
एक दीवाना शमा पर था मंडरा रहा
फिर शमा ना रही ना दीवाना रहा
प्यार में मिट गए बस कहानी रही
ये शाम आ गई..........................
दिल तसव्वुर में खोया................

मेरे ख्वाबों खयालों में बसना तेरा
जुल्फ लहरा के अपनी वो हंसना तेरा
तेरी जुल्फों उलझा के अपना ये दिल
धडकनें मेरे दिल की उलझती रही

ये शाम आ गई..........................
दिल तसव्वुर में खोया................

वो भी दिन थे सनम साथ जीएं थे हम
साथ रहने की कसमें भी खाए थे हम
दूर हमसे गए दूर दिल से गए
धड़कनें रो केे तुमको बुलाती रही

ये शाम आ गई..........................
दिल तसव्वुर में खोया................
ऐ खुदा गर थी वो आसमां की कली
तो कली को मिली फिर क्यूं दो गज जमीं
इस जमाने ने रूसवा किया था उसे
छोड़ के सब उसने जां तेरे नाम की

ये शाम आ गई..........................
दिल तसव्वुर में खोया.................
-अनिल डबराल

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सौंणा दा (SAUNA DA)

सौंणा दा
फोटो क्रेडिट - जन्नु दा

सौणा दा कु सल्ल देखा
देखा वेकू हौळ जी।
नाडू-निसुड़ खच्च-पच्च
अर म्वाल मा छिन टल्ला जी।।1

ज्यू मां जु छन बल्द फंस्यां
हड्क्यूं की सी थुपड़ी जी।
कटक्याणु लग्यूं सौणा दा
अर सुटकी धरीं भ्यूंल की।।2

ठेली-ठेली की चलना बल्द
चखल्यूं की पौ-बारा जी।
हांकी सीं मां आंद आंद 
साफ करणा बीज जी।।3

जोळ मां जब खुट धरेणू
जोळ घच्च रूकणु च।
बथौं बण्यूं हौळ मा जन
गौंत क जलडु फंसणु च।।4

हौल मां त अडगणा छिन
बौण मां छिन अटकणा।
सौंणा दा रे बल्द त्यारा
धरू धरू छिन डबखणा।।5

सौंणा दा रे धर्मु बोड़ा मान
बल्द लीण छोड़ दे।
पैंसा लगैकी ऐसू क बसग्याल
भभर्यूं की जोड़ी जोड़ दे।।6

तन से भी हौळ के पिछने छे
अर धन से भी हौळ क पिछने तू।
लोखुन बेचीनी बल्दौं की जोड़ी
अब ये तै ही बिजनेस बणौं तू।।7
-अनिल डबराल 27.09.2010


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शनिवार, 16 मई 2020

निरभागीअषढु (NIRBHAGI ASHADHU)



निरभागी  अषढु (15.10.10)

        यह पहाड़ का एक छोटा सा बाजार है। सभी दुकानदार सुस्ता रहे हैं। कहीं पर रेडियो बज रहा है लेकिन दुकानदार की अंगडाई और जम्हाई के साथ वह भी बन्द हो रहा है। इस बाजार में एक या दो बार ही रौनक आती है जब विद्यालय में मध्यावकाश होता है या फिर छुट्टी होती है। और क्यों न हो, दूर-दूर के सारे गांवों की आवश्यक चीजों की आपूर्ति ज्यादातर इन्ही विद्यार्थियों के द्वारा होती है। और विनिमय में किसी की थैली से गुड़ तो किसी की थैली से एक मुट्ठी चीनी।
          वैसे इस बाजार में गांव वालों का आना जाना कम ही होता है, कभी-कभार आवश्यक चीजों के लिए यहां तक पहुंचने की दुर्गम चढाई का सामना करना पड़ता है। हम गाड़ियों को देखने के शौक के चलते यहां आया करते थे। तभी मैंने गाड़ी की आवाज सुनी और सड़क पर पहुंच गया। यह गाड़ी सामान से भरी थी। गाड़ी में ड्राइवर के अलावा दो अन्य लोग भी थे। सड़क किनारे गाड़ी खड़ी हुई। वहां से एक आदमी खुद को झाड़ता हुआ सामने की दुकान में चला गया। फिर गाड़ी से एक ड्राइवर और दूसरा आदमी निकला। ड्राइवर निकलते ही व्यायाम करते हुए सामने की दुकान में चला गया दूसरा आदमी जिसका पेट उससे एक हाथ आगे था, उसके समृद्ध लाला होने की ओर इशारा कर रहा था। गाड़ी से निकलते ही कुछ खोज रहा था। अभीष्ट वस्तु मिलते ही वह चिल्लाया- अरे अषढ़ू!
             उसके अभीष्ट पर मेरी दृष्टि ठिठक गई। क्योंकि वह दृश्य ही दृष्टि-स्तम्भित करने वाला था। मैंने देखा वहां पर एक आदमी बोरी ओढ़े बैठा था। बोरी के कारण वह स्पष्ट नही दिखाई दे रहा था। पर लाला ने जब दुबारा आवाज दी तो वह- हांजे के एक विशाल शब्द के साथ उठा और प्रत्यक्ष हो गया। वह शरीर से भयानक पर चेहरे से मासूम प्रतीत हो रहा था। उसके बाल सुई की तरह नुकीले और मोटे थे। आंखे लाल लाल और बड़ी बड़ी थी, लेकिन उनमें कहीं भी भयानकता नही थी वे स्वयं ही आतंकित सी लग रही थी। उसके दांत आडे-तिरछे थे। वह आर्मी की कमीज पहने था वर्षों से शायद इसीलिए उसका साथ दे रही थी। वरना आजकल के कपड़े तो एक महीने भी किसी के तन पर नही टिकते, उसकी कमीज भी डिजाइन और सिलाई से आर्मी की लग रही थी क्योंकि उसका रंग असीमित दागों की गहराई में लुप्त हो गया था। उसकी पैंट एक डोरी के सहारे उसकी कमर पर विराजमान है। उसकी लम्बाई घुटने से चार अंगुल नीचे है। जगह जगह लगे पैबन्द और घिसकर महीन हुए धागे। रंग का इसका भी पता नही।
तभी लाला ने कहा- ‘‘ये पूरी राशन उठाकर मेरी दुकान में रख दे’’ अषढु खुश हो गया कि वह काम करेगा तो लालाजी उस चीनी की चासनी में तले चिप्स खिलाएंगे और चाय भी पिलाएंगे। जल्दी जल्दी वह सामान ले जाने लगा।
अषढु का जीवन एकाकी है। जो स्वभावतः होना ही था। कौन उसे अपना साजन बनाता? उसे सजनी मिलती भी तो अपूर्ण ही मिलती। दो दुःखों से दुखी होने से अच्छा है कि एक ही दुख रहे कि उसका कोई नही है।
           अब उसने सारा सामान दुकान तक पहुंचा दिया है, और लाला के इधर उधर मंडराने लगा है कि लाला अब उसे कुछ खाने को देगा। पर डर के कारण बोल भी नही पा रहा है। लाला भी उसके मंडराने को समझता है अतः लाला ने एक दुकानदार को आवाज दी- ‘‘अरे दिल्लू ये निर्भे तै चाय पिलै दे’’ (इस भाग्यहीन को चाय पिला दे)
              चाय का बर्तन जा धोने के लिए रख दिया था उसी में पानी डाला और चाय बना दी। इधर अषढू तब तक चिप्स टटोलने लगा कि कौन सा चिप्स बड़ा है। चायवाले ने उसे ऐसा करते देख फटकारा- ‘‘निर्भै अषढु भाग जा यख बिटेक’’
              अषढु रूआंसा हो गया और बोझिल कदमों से वहां से चला गया। अब तक शाम भी हो गई है। अषढु अपने पहले स्थान पर बोरी ओढे धूप सेक रहा है। थोड़ी देर में धूप वहां से चली जाती है। और वो भी वहां से आगे बढ़ जाता है कि कहीं किसी टीले पर थोड़ी धूप मिले.................
-अनिल डबराल
                                                                                                                                                                   
फोटोः-साभार सोशल मीडिया

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बुधवार, 13 मई 2020

हमसफर (STICK)


हमसफर
रही उपेक्षित तू मुझसे,
पर प्रतिपल तूने साथ दिया।
मग में डगमग पडे़ कदम तो,
तुमने उनको थाम लिया।।
कभी संग चल पड़ा कारवां,
कभी मैं निपट अकेला था।
पर तू थी प्रतिपल संग मेरे,
और कभी न मैंने जाना था।।
हमराह बनी हर पथ में तू,
हर सुख-दुख हमने साथ सहा।
निर्जीव थी तू ओ हमराही,
और कभी न तुझसे प्यार हुआ।।
चलता था प्रतिपल़ तुझ संग मैं,
लगा जगत को आवारा।
ऋण है तेरा मुझ पर साथी,
क्या कभी उऋण हो पाउंगा।।
-अनिल डबराल
                                                                                                                                                                   
photo source:- freepic

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गांव की एक शाम (पलायन की व्यथा कथा)

गांव की एक शाम

     शाम का समय था। अंधेरा घिर रहा था। एक घर में रेडियो पर अंग्रेजी गीत बज रहे थे। मै सोचने लगा इस गांव में ऐसा कौन है जो अंगे्रजी गीतों को सुन रहा है। यहां तो लोग हिन्दी भी ठीक से नही जानते...... उस घर में लाइट भी नही है......एक छोटी सी चिमनी जल रही है.... शायद कोई वहां खाना बना रहा है। खिडकी से धुंवा बाहर आ रहा है। आखिरकार मैंने अपने दोस्त से पूछ ही लिया- ‘‘प्रभात वहां कौन रहता है’’? उसने कहा- एक बुढ़िया रहती है  
‘‘अकेली’’ 
मेरे सारे सवालों का जवाब मिल गया था।
मैं मौन हो गया..........
                                                                     -अनिल डबराल

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मंगलवार, 12 मई 2020

विदा (VIDA)


विदा (10.03.12)
PHOTO SOURCE:- UNSPLASH


कैसे संभाला होगा उस समंदर को
जो आखो में उमड़ आया था
अनायास चमकने लगी थी उसकी आखें
डबडबा गई थी पर बूंद न गिरने दी अपने कोमल कपोलों पर
जड़वत बनी रही अपलक जमीं को निहारती
हाथों में अपने मेरा हाथ थामें......... कुछ न कहती बस मौन थी।
अधरों को दांतों से दबाए आंसुओं को रोकने की
नाकाम कोशिश कर रही थी।
मै भी चुप था.... कहता भी क्या... मुझे पता था मेरे कहने से छलक उठेगा सागर
और अबकी उसे रोकना मुश्किल होगा।
एकाएक मेरी ओर मुड़ी............
नजरें मिली..... अहो! वो सजल तृषित नयन.........
हृदय में गहरे उतर गये खंजर से..........
 वक्त थम सा गया था.... रक्त जम सा गया था।
सांसे अब मानों बोझ हो.......... लब्ज बनते न थे.....
होंठ सिल से गए थे....... हिम्मत करके उसने फिर पूछ लिया...
क्या जाना जरूरी है? कायम रहा मैं मौन पर......
कहा भी तो न गया था कुछ.........
समझकर स्वीकृति मौन को............ फफकने लगी...
अब न रोक पायी थी अपने अश्रुधार को...
अनवरत बहाती रही, फिर रूकी कहने लगी- तुमको क्या फर्क पडता है?
निर्मोही हो तुम तुम्हारे दिल में प्यार नही है।
उफ! उसकी बातें हृदय को चीरती रही थी,
पर काश! एक बार वो हृदय में झांक लेती
फिर देखती वहां वो ही तो थी।
पर वो तो हाथ झटकर पैर पटककर चली गई
मैं भी तो अजीब हूं जो मनाना नही आता।
वाकिफ हूं हर दर्द से
हर दर्द को मैं समझता हूं।
हर दर्द में दर्द भी होता है...........
पर दर्द से आंख नही भरती....
बस टीस सी दिल में चुभती है....
बस टीस सी दिल में चुभती है.....

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सोमवार, 11 मई 2020

पथिक (PATHIK)


पथिक

अब के पथिक तेरे लिए

है राह भी परिणाम भी।

तू सोचकर फिर गौर कर

जाना कहां तू जा तभी।।01



          अनुसरण कर अनुकरण कर

          या खुद बना दे पथ नया।

           पथ के पथिक बाधा हटा

  उस पथ को तू सुपथ बना।।02



  पथ के पथिक पथ में कहीं गर

  पथ कोई दुपथ मिले।

  तू सोचकर फिर गौर कर

  गर है सुपथ तू जा तभी।।03


पथिक तेरे पथ में कांटे

भी मिलेंगे गर कहीं।

तू सोचकर फिर गौर कर

अनुचरों को पथ साफ कर।।04

 

   उद्दण्ड शैल दुर्लंघ्य सरिता

   जब राह तेरा रोक ले।

   तू सोचकर फिर गौर कर

   उत्साह बुद्धि से काम ले।।05



      हो अमावस घनघोर वन हो

      अपना साया तक न संग हो।

      तू सोचकर फिर गौर कर

      तू वीर है पथ प्रशस्त कर।।06


सत्पथ की हैं राहें कठिन

आपद-विपद् की हैं आंधियां।

तू सोचकर फिर गौर कर

चलता जा सीना तानकर।।07
-अनिल डबराल
                                                                        
Photo source:- wallpaper cave


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